शेरपुर के संकरवार वंस के विषय में यदि कहा जाय की इस वंस का सम्बन्ध नाग वंस से है। तो कहा तक सत्य होगा ?. इस विषय पर गहन अध्यन की जरूरत है। ये सिर्फ एक कल्पना और वकवास ही नहीं बल्कि एक जातिगत उतप्ति का विषय है।इस वंश के कोई व्यक्ति क्या कभी अपना गुरसूत्र का वैज्ञानिक अध्ययन किया है यदि नहीं तो करना चाहिये ?.
नाग वंस से लोगो की धारणा क्या किसी सर्प ,या नाग से है। यदि ऐसा है तो अपनी धारणा बदलने की जरूरत है। नाग वंस एक जाति थी जो हर एक इंसान की तरह ही थी। ये एक उच्य कोटि की मनुष्य जाति थी जिसको धार्मिक धर्म ग्रंथो में आर्य नाम से उल्लेख किया गया है। महाभारत काल में राजा परीक्षित को नाग वंस के राजा तक्षत ने सर्प की तरह कोई काटा नहीं था बल्कि युध्य में शत्रु की तरह बध्य किये थे। ये एक युध्य था जो दो धुर्य विरोधयों के बिच होना पाया जाता है।जिस युध्य में राजा परीक्षित के मृत्यु के बाद उनके पुत्र जनमेजय ने युध्य जारी रखा और नाग वंस के बहुत सारे स्थानो पर नहीं केवर युध्य किये बल्कि नाग वंशियो के लोगो को जो ग्रामीण या किसी तरह से राजा जनमेजय द्वारा गिरपतार अर्थात बंदी बनाये जा चुके थे उन्हें जिन्दा जला दिया गया। ये युध्य नाग वंशियो को पूर्ण रूप से पृथ्वी से समाप्त करने के उदेश्य से हुआ था। इस युध्य को अन्य दूसरे राजाओ के हस्तक्षेप द्वारा रोका जा सका। महात्मा तक्षक ने ही तक्षक शिला (-तक्षशिला) बसाकर अपने कुल के लोगो को शिक्षित कर मजबूती प्रदान करने का कार्य किये थे। इस तरह आज भी पुरे भारत में ये जातीय फैली हुई है। इतिहास को खरासने पर अन्य तथ्य सामने आते है। राजा परीक्षित के समय ही कलयुग का आगमन हो चुका था और उस समय के अस्त्र शास्त्र जो तंत्र मंत्र द्वारा चलयमान होते थे वे निक्रिय हो चुके थे। बैदिक ज्ञान का ह्रास प्रारम्भ हो चूका था राजा जनमेजय के समय तक तो बहुत कुछ बदल चूका था। जिसको लोग नाग यज्ञ की संज्ञा देते है वो एक युध्य रूपी यज्ञ था। वह कोई तंत्र मंत्र का यज्ञ नहीं था। जो अन्य ग्रंथो में मिलता है। इस युध्य में नाग वंशियो ने अपने प्राणो की आहुति दिये है। वे हथियारों द्वारा एक वीर योध्या की तरह पूर्ण युध्य लड़े है।
हर युध्य में हार जीत होना एक अलग बात है। हार जीत क्या वीरता की पहचान अमर है।
कन्या कुञ्ज बंशावली के अनुसार आगे चलकर कन्या कुञ्ज में संकरवार वंस हुआ और वर्ण वेवस्था के अनुरूप संकरवार वंस बहुत सारी जाति , धर्म के रूप में बटा। इसी में ब्राह्मण , भूमिहार ,खत्री व मुश्लिम भी हुये।
हरेराम राय 'शेरपुर '
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